वो ख़ौफ़-ए-जाँ था कि लब खोलना गवारा न था

वो ख़ौफ़-ए-जाँ था कि लब खोलना गवारा न था

सदाएँ सहमी कुछ ऐसी सुख़न का यारा न था

तमाम अपने पराए कटे कटे से रहे

छुरी जो चमकी तो उस ने किसे पुकारा न था

रुख़-ए-कमाँ था उधर तीर का निशाना इधर

हमारा दोस्त तो था और मगर हमारा न था

रफ़ू-तलब नज़र आता है देखिए जिस को

लिबास-ए-जाँ तो कभी इतना पारा पारा न था

ख़ुदा करे कि रहे मेहरबाँ सदा तुम पर

अज़ीज़ो वक़्त कि इक लम्हा भी हमारा न था

उड़ानें भरते परिंदों के पर कतर डालें

नज़र के सामने ऐसा कभी नज़ारा न था

है दूर हद्द-ए-नज़र से तो क्या क़यामत है

हमारे पास था जब तक वो इतना प्यारा न था

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In Hindi By Famous Poet Nasr Ghazali. is written by Nasr Ghazali. Complete Poem in Hindi by Nasr Ghazali. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.