भाग कि मंज़िल-ए-क़रार उम्र की रहगुज़र नहीं

भाग कि मंज़िल-ए-क़रार उम्र की रहगुज़र नहीं

इस में फ़रार के सिवा और कोई मफ़र नहीं

है तो बला-ए-ज़िंदगी रस्म-ए-वफ़ा मगर नहीं

बात ये है कि ख़ैर से शर पे मिरी नज़र नहीं

शैख़ जज़ा-ए-कार-ए-ख़ैर ये जो बता रहा है आज

बात तो ख़ूब है मगर आदमी मो'तबर नहीं

बहर-ए-हुसूल-ए-मुद्दआ रात दिन एक कीजिए

राह-ए-तलब के वास्ते शाम नहीं सहर नहीं

रहते हैं दूर दूर हम रस्म-ओ-रिवाज-ए-ज़ीस्त से

चलते हैं जिस पे आम लोग अपनी वो रहगुज़र नहीं

छोड़ भी देते मोहतसिब हम तो ये शग़्ल-ए-मय-कशी

ज़िद का सवाल है तो फिर जा इसी बात पर नहीं

कौन है जो नहीं शिकार इस में ख़याल-ए-ख़ाम का

क्या है ये बज़्म-ए-ज़िंदगी दाम-ए-फ़रेब अगर नहीं

'नातिक़'-ए-नीम-जाँ अगर है भी तो सुब्ह-ओ-शाम का

कल तो ख़राब-हाल था आज कुछ ख़बर नहीं

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In Hindi By Famous Poet Natiq Gulavthi. is written by Natiq Gulavthi. Complete Poem in Hindi by Natiq Gulavthi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.