सब को ये शिकायत है कि हँसता नहीं 'नातिक़'
हम को ये तअ'ज्जुब कि वो गिर्यां नहीं होता
Mohsin Naqvi
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Anwar Masood
Rahat Indori
Jaun Eliya
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आलम-ए-कौन-ओ-मकाँ नाम है वीराने का
न मय-कशी न इबादत हमारी आदत है
रह के अच्छा भी कुछ भला न हुआ
हिचकियों पर हो रहा है ज़िंदगी का राग ख़त्म
तुम्हारी बात का इतना है ए'तिबार हमें
हम पाँव भी पड़ते हैं तो अल्लाह-रे नख़वत
आ गई दिल की लगी बढ़ के रग-ए-जाँ के क़रीब
मिले मुराद हमारी मगर मिले भी कहीं
इस ख़ाक-दान-ए-दहर में घुटता अगर है दम
अव्वल अव्वल ख़ूब दौड़ी कश्ती-ए-अहल-ए-हवस
उसे पा-ब-गिल न रखता जो ख़याल-ए-तीरा-बख़्ती
देखता रहता हूँ अक्सर शाम-ए-क़ुदरत देख कर