तुम्हारी बात का इतना है ए'तिबार हमें
कि एक बात नहीं ए'तिबार के क़ाबिल
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सब को ये शिकायत है कि हँसता नहीं 'नातिक़'
मुद्दतें हो गई होता नहीं फेरा तेरा
अब कहें किस से कि उन से बात करना है गुनाह
नज़र आता नहीं अब घर में वो भी उफ़ रे तन्हाई
जुनूँ तलाश में है पा न ले बहार मुझे
ऐ शब-ए-हिज्राँ ज़ियादा पाँव फैलाती है क्यूँ
घर बनाने की बड़ी फ़िक्र है दुनिया में हमें
आलम-ए-कौन-ओ-मकाँ नाम है वीराने का
ऐ मुसव्विर सूरत-ए-दिल-गीर खींच
हाँ जान तो देंगे मगर ऐ मौत अभी दम ले
हाँ ये तो बता ऐ दिल-ए-महरूम-ए-तमन्ना
वफ़ा पर नाज़ हम को उन को अपनी बेवफ़ाई पर