उम्र भर का साथ मिट्टी में मिला
हम चले ऐ जिस्म-ए-बे-जाँ अलविदाअ'
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नज़र आता नहीं अब घर में वो भी उफ़ रे तन्हाई
बुतों के साथ ली दी सी जो याद-अल्लाह बाक़ी है
हमारे ऐब में जिस से मदद मिले हम को
तो हमें कहता है दीवाना को दीवाने सही
उसी की देन है ग़म में गिला नहीं करता
नहीं रुकता तो जा ख़ुदा-हाफ़िज़
बंदगी कीजिए मगर किस की
ख़त्म करना चाहता हूँ पेच-ओ-ताब-ए-ज़िंदगी
रह के अच्छा भी कुछ भला न हुआ
मिले मुराद हमारी मगर मिले भी कहीं
क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के
देख ये बार कभी सर से उतरता ही नहीं