हमारे ऐब में जिस से मदद मिले हम को
हमें है आज कल ऐसे किसी हुनर की तलाश
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मेरे सीने में नहीं है तो ये समझो कि न था
ऐ दिल-ए-शिकवा-संज क्या गुज़री
जो बला आती है आती है बला की 'नातिक़'
बादा-मस्ती आ करामत हो के मयख़ाने में आ
रह-नवरदान-ए-वफ़ा मंज़िल पे पहुँचे इस तरह
कीजिए कार-ए-ख़ैर में हाजत-ए-इस्तिख़ारा क्या
हाथ रहते हैं कई दिन से गरेबाँ के क़रीब
किस को मेहरबाँ कहिए कौन मेहरबाँ अपना
ऐसे बोहतान लगाए कि ख़ुदा याद आया
ग़म जुदा पेश रहा है मिरे अफ़्कार जुदा
मुझ को मालूम हुआ अब कि ज़माना तुम हो
आ गई दिल की लगी बढ़ के रग-ए-जाँ के क़रीब