किस को मेहरबाँ कहिए कौन मेहरबाँ अपना
वक़्त की ये बातें हैं वक़्त अब कहाँ अपना
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अब कहें किस से कि उन से बात करना है गुनाह
आ उम्र-ए-रफ़्ता हश्र के दम-ख़म भी देख लें
ज़ाहिर न था नहीं सही लेकिन ज़ुहूर था
क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के
हम हैं तो न रक्खेंगे इतना तुझे अफ़्सुर्दा
मजनूँ से जो नफ़रत है दीवानी है तू लैला
इक हर्फ़-ए-शिकायत पर क्यूँ रूठ के जाते हो
ऐ शब-ए-हिज्राँ ज़ियादा पाँव फैलाती है क्यूँ
दम कोई दम का है मेहमाँ अलविदा'अ
अब कहाँ गुफ़्तुगू मोहब्बत की
चराग़ ले के फिरा ढूँढता हुआ घर घर
उम्र भर का साथ मिट्टी में मिला