कुछ नहीं अच्छा तो दुनिया में बुरा भी कुछ नहीं
कीजिए सब कुछ मगर अपनी ज़रूरत देख कर
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कहने वाले वो सुनने वाला मैं
दयार-ए-होश की पहले जुनूँ ख़बर लेना
देख ये बार कभी सर से उतरता ही नहीं
रस्म-ए-तलब में क्या है समझ कर उठा क़दम
रहती है शम्स-ओ-क़मर को तिरे साए की तलाश
कर दिया दहर को अंधेर का मस्कन कैसा
मजनूँ से जो नफ़रत है दीवानी है तू लैला
जिस की हसरत थी उसे पा भी चुके खो भी चुके
मुझ से नाराज़ हैं जो लोग वो ख़ुश हैं उन से
रह के अच्छा भी कुछ भला न हुआ
हो गई आवारागर्दी बे-घरी की पर्दा-दार
ऐ ज़िंदगी जुनूँ न सही बे-ख़ुदी सही