कहने वाले वो सुनने वाला मैं
एक भी आज दूसरा न हुआ
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दूसरों को क्या कहिए दूसरी है दुनिया ही
कुछ नहीं अच्छा तो दुनिया में बुरा भी कुछ नहीं
आया तो दिल-ए-वहशी दर-बंद-ए-नियाज़ आया
ऐ ज़िंदगी जुनूँ न सही बे-ख़ुदी सही
क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के
सुब्ह-ए-पीरी में फिरा शाम-ए-जवानी का गया
तरीक़-ए-दिलबरी काफ़ी नहीं हर-दिल-अज़ीज़ी को
रिया-कारी के सज्दे शैख़ ले बैठेंगे मस्जिद को
बे-ख़ुद-ए-शौक़ हूँ आता है ख़ुदा याद मुझे
तो हमें कहता है दीवाना को दीवाने सही
उसी की देन है ग़म में गिला नहीं करता
अब कहाँ गुफ़्तुगू मोहब्बत की