हो गई आवारागर्दी बे-घरी की पर्दा-दार
काम जितना हम को आता था वो काम आ ही गया
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आलम-ए-कौन-ओ-मकाँ नाम है वीराने का
हम तो मस्जिद से भी मायूस ही आए 'नातिक़'
बे-ख़ुद-ए-शौक़ हूँ आता है ख़ुदा याद मुझे
कीजिए कार-ए-ख़ैर में हाजत-ए-इस्तिख़ारा क्या
धूम कर रक्खी थी कल रिंदों ने बज़्म-ए-वा'ज़ में
कैफ़ियत-ए-तज़ाद अगर हो न बयान-ए-शे'र में
भाग कि मंज़िल-ए-क़रार उम्र की रहगुज़र नहीं
क्यूँ ख़याल-ए-रंज-ओ-राहत से न हों बेगाना हम
मिले मुराद हमारी मगर मिले भी कहीं
जीने देगा भी हमें ऐ दिल जिएँ भी या न हम
अब कहें किस से कि उन से बात करना है गुनाह
अहल-ए-जुनूँ पे ज़ुल्म है पाबंदी-ए-रुसूम