अहल-ए-जुनूँ पे ज़ुल्म है पाबंदी-ए-रुसूम
जादा हमारे वास्ते काँटा है राह का
Anwar Masood
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Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
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सब कुछ मुझे मुश्किल है न पूछो मिरी मुश्किल
तुम अगर जाओ तो वहशत मिरी खा जाए मुझे
सर्द हो जाती है फ़िक्र-ए-जाह-ए-दुनिया जिस के बअ'द
क्या करूँ ऐ दिल-ए-मायूस ज़रा ये तो बता
अब कहें किस से कि उन से बात करना है गुनाह
इज़्तिराब-ए-दिल में आ जा कर दवाम आ ही गया
रह के अच्छा भी कुछ भला न हुआ
इंतिज़ाम-ए-रोज़-ए-इशरत और कर ऐ ना-मुराद
तो आख़िर साज़-ए-हस्ती क्यूँ तरब-आहंग-ए-महफ़िल था
हो गई आवारागर्दी बे-घरी की पर्दा-दार
हँस के नहीं तो रो के भी उम्र गुज़र ही जाएगी
हाँ ये तो बता ऐ दिल-ए-महरूम-ए-तमन्ना