सब कुछ मुझे मुश्किल है न पूछो मिरी मुश्किल
आसान भी हो काम तो आसाँ नहीं होता
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Faiz Ahmad Faiz
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Mir Taqi Mir
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दोस्ती किस की रही याद वो किस पर भूला
ख़त्म करना चाहता हूँ पेच-ओ-ताब-ए-ज़िंदगी
सर से दयार-ए-ग़म के सनीचर उतार दे
रिंदान-ए-बादा-नोश की छागल उठा तो ला
महफ़िल-ए-नाज़ से मैं हो के परेशान उठा
हम हैं तो न रक्खेंगे इतना तुझे अफ़्सुर्दा
रिया-कारी के सज्दे शैख़ ले बैठेंगे मस्जिद को
रह-नवरदान-ए-वफ़ा मंज़िल पे पहुँचे इस तरह
मेरे सीने में नहीं है तो ये समझो कि न था
अब कहें किस से कि उन से बात करना है गुनाह
कौन इस रंग से जामे से हुआ था बाहर
आख़िर को राहबर ने ठिकाने लगा दिया