आख़िर को राहबर ने ठिकाने लगा दिया
ख़ुद अपनी राह ली मुझे रस्ता बता दिया
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किस को मेहरबाँ कहिए कौन मेहरबाँ अपना
कश्ती है घाट पर तू चले क्यूँ न दूर आज
ग़म जुदा पेश रहा है मिरे अफ़्कार जुदा
ऐ बादा-कश गई है मय-ए-ऐश किस के साथ
हिचकियों पर हो रहा है ज़िंदगी का राग ख़त्म
उम्र भर का साथ मिट्टी में मिला
जुनूँ तलाश में है पा न ले बहार मुझे
आया तो दिल-ए-वहशी दर-बंद-ए-नियाज़ आया
नाज़ उधर दिल को उड़ा लेने की घातों में रहा
देखता रहता हूँ अक्सर शाम-ए-क़ुदरत देख कर
दम कोई दम का है मेहमाँ अलविदा'अ
ज़िक्र-ए-शराब-ए-नाब पे वाइ'ज़ उखड़ गया