आ उम्र-ए-रफ़्ता हश्र के दम-ख़म भी देख लें
तूफ़ान-ए-ज़िंदगी की वो हलचल उठा तो ला
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ख़ुद हो के कुछ ख़ुदा से भी मर्द-ए-ख़ुदा न माँग
आज मय-ख़ाने में बरकत ही सही
हँस के नहीं तो रो के भी उम्र गुज़र ही जाएगी
आलम-ए-कौन-ओ-मकाँ नाम है वीराने का
हमें जो याद है हम तो उसी से काम लेते हैं
आती है याद सुब्ह-ए-मसर्रत की बार बार
अव्वल अव्वल ख़ूब दौड़ी कश्ती-ए-अहल-ए-हवस
कभी सोज़-ए-दिल का गिला किया कभी लब से शोर-ए-फ़ुग़ाँ उठा
कुछ नहीं अच्छा तो दुनिया में बुरा भी कुछ नहीं
सर्द हो जाती है फ़िक्र-ए-जाह-ए-दुनिया जिस के बअ'द
जो सुनते हैं तो मैं मम्नून हूँ उन की इनायत का
तुम अगर जाओ तो वहशत मिरी खा जाए मुझे