मजनूँ से जो नफ़रत है दीवानी है तू लैला
वो ख़ाक उड़ाता है लेकिन नहीं दिल मैला
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Gulzar
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पहुँच गए तो करेंगे इधर-उधर की तलाश
पाबंद-ए-दैर हो के भी भूले नहीं हैं घर
नाज़ उधर दिल को उड़ा लेने की घातों में रहा
मेरे सीने में नहीं है तो ये समझो कि न था
ऐ निगाह-ए-मस्त उस का नाम है कैफ़-ए-सुरूर
जो सुनते हैं तो मैं मम्नून हूँ उन की इनायत का
बादा-मस्ती आ करामत हो के मयख़ाने में आ
भाग कि मंज़िल-ए-क़रार उम्र की रहगुज़र नहीं
चराग़ ले के फिरा ढूँढता हुआ घर घर
हमारे ऐब में जिस से मदद मिले हम को
अब गर्दिश-ए-दौराँ को ले आते हैं क़ाबू में
अब जहाँ में बाक़ी है आह से निशाँ अपना