अब जहाँ में बाक़ी है आह से निशाँ अपना
उड़ गए धुएँ अपने रह गया धुआँ अपना
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क्या करूँ ऐ दिल-ए-मायूस ज़रा ये तो बता
ऐ बादा-कश गई है मय-ए-ऐश किस के साथ
कर दिया दहर को अंधेर का मस्कन कैसा
कीजिए कार-ए-ख़ैर में हाजत-ए-इस्तिख़ारा क्या
जुनूँ तलाश में है पा न ले बहार मुझे
भर पाए जान-ए-ज़ार तिरी दोस्ती से हम
ख़ुद हो के कुछ ख़ुदा से भी मर्द-ए-ख़ुदा न माँग
रखता है तल्ख़-काम ग़म-ए-लज़्ज़त-ए-जहाँ
वहाँ से ले गई नाकाम बदबख़्तों को ख़ुद-कामी
तरीक़-ए-दिलबरी काफ़ी नहीं हर-दिल-अज़ीज़ी को
ज़िक्र-ए-शराब-ए-नाब पे वाइ'ज़ उखड़ गया
मजनूँ से जो नफ़रत है दीवानी है तू लैला