वहाँ से ले गई नाकाम बदबख़्तों को ख़ुद-कामी
जहाँ चश्म-ए-करम से ख़ुद-ब-ख़ुद कुछ काम होना था
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Jaun Eliya
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(341) Peoples Rate This
घर बनाने की बड़ी फ़िक्र है दुनिया में हमें
जिस की हसरत थी उसे पा भी चुके खो भी चुके
ऐ बादा-कश गई है मय-ए-ऐश किस के साथ
क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के
कर दिया दहर को अंधेर का मस्कन कैसा
जो बला आती है आती है बला की 'नातिक़'
ढूँढ तो बुत भी यहीं मिल जाएँगे मर्द-ए-ख़ुदा
रह के अच्छा भी कुछ भला न हुआ
नज़र आता नहीं अब घर में वो भी उफ़ रे तन्हाई
ख़ुद हो के कुछ ख़ुदा से भी मर्द-ए-ख़ुदा न माँग
इक हर्फ़-ए-शिकायत पर क्यूँ रूठ के जाते हो
ऐसे बोहतान लगाए कि ख़ुदा याद आया