क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के
किस से मिलना है ख़ाक में मिल के
ऐ दिल शिकवा-संज क्या गुज़री
किस लिए होंट रह गए सिल के
मिटते जाते हैं राह-ए-उम्र में दोस्त
मिल रहे हैं निशान मंज़िल के
छोड़ 'नातिक़' फ़ज़ा-ए-बज़्म-ए-शिकस्त
उठ के टुकड़े सँभाल ले दिल के
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अहल-ए-जुनूँ पे ज़ुल्म है पाबंदी-ए-रुसूम
देख ये बार कभी सर से उतरता ही नहीं
आ गई दिल की लगी बढ़ के रग-ए-जाँ के क़रीब
रिंद की काएनात क्या है ख़ाक
आ के बज़्म-ए-हस्ती में क्या बताएँ क्या पाया
कहने वाले वो सुनने वाला मैं
रहती है शम्स-ओ-क़मर को तिरे साए की तलाश
दम कोई दम का है मेहमाँ अलविदा'अ
हम पाँव भी पड़ते हैं तो अल्लाह-रे नख़वत
तो हमें कहता है दीवाना को दीवाने सही
मजनूँ से जो नफ़रत है दीवानी है तू लैला
कुछ नहीं अच्छा तो दुनिया में बुरा भी कुछ नहीं