ये ख़ुदा की शान तो देखिए कि ख़ुदा का नाम ही रह गया
मुझे ताज़ा याद-ए-बुताँ हुइ जो हरम से शोर-ए-अज़ाँ उठा
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रिया-कारी के सज्दे शैख़ ले बैठेंगे मस्जिद को
ऐ मुसव्विर सूरत-ए-दिल-गीर खींच
आया तो दिल-ए-वहशी दर-बंद-ए-नियाज़ आया
घर बनाने की बड़ी फ़िक्र है दुनिया में हमें
क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के
बादा-मस्ती आ करामत हो के मयख़ाने में आ
हम पाँव भी पड़ते हैं तो अल्लाह-रे नख़वत
शैख़ जज़ा-ए-कार-ए-ख़ैर जो बता रहा है आज
ढूँढती है इज़्तिराब-ए-शौक़ की दुनिया मुझे
दूसरा ऐसा कहाँ ऐ दश्त ख़ल्वत का मक़ाम
भर पाए जान-ए-ज़ार तिरी दोस्ती से हम