शैख़ जज़ा-ए-कार-ए-ख़ैर जो बता रहा है आज
बात तो ख़ूब है मगर आदमी मो'तबर नहीं
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Anwar Masood
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(327) Peoples Rate This
वहाँ से ले गई नाकाम बदबख़्तों को ख़ुद-कामी
कश्ती है घाट पर तू चले क्यूँ न दूर आज
आख़िर को राहबर ने ठिकाने लगा दिया
खा गई अहल-ए-हवस की वज़्अ अहल-ए-इश्क़ को
उसी की देन है ग़म में गिला नहीं करता
जुरअत-अफ़ज़ा-ए-सवाल ऐ ज़हे अंदाज़-ए-जवाब
जिस की हसरत थी उसे पा भी चुके खो भी चुके
क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के
दयार-ए-होश की पहले जुनूँ ख़बर लेना
अब कहाँ गुफ़्तुगू मोहब्बत की
ग़म जुदा पेश रहा है मिरे अफ़्कार जुदा
दोस्ती किस की रही याद वो किस पर भूला