ऐसे बोहतान लगाए कि ख़ुदा याद आया
बुत ने घबरा के कहा मुझ से कि क़ुरआन उठा
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रह-नवरदान-ए-वफ़ा मंज़िल पे पहुँचे इस तरह
ऐ बादा-कश गई है मय-ए-ऐश किस के साथ
कहने वाले वो सुनने वाला मैं
किस को मेहरबाँ कहिए कौन मेहरबाँ अपना
क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के
सर्द हो जाती है फ़िक्र-ए-जाह-ए-दुनिया जिस के बअ'द
बंदगी कीजिए मगर किस की
इस ख़ाक-दान-ए-दहर में घुटता अगर है दम
ये ख़ुदा की शान तो देखिए कि ख़ुदा का नाम ही रह गया
हो गई आवारागर्दी बे-घरी की पर्दा-दार
सब को ये शिकायत है कि हँसता नहीं 'नातिक़'
दूसरा ऐसा कहाँ ऐ दश्त ख़ल्वत का मक़ाम