दीवानगी मेरी के तहय्युर में शब-ओ-रोज़
है हल्क़ा-ए-ज़ंजीर से ज़िंदाँ हमा-तन-चश्म
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बहार
वो आप से रूठा नहीं मनने का 'नज़ीर' आह
रखते हैं जो हम चाह तुम्हारी दिल में
कल उस के चेहरे को हम ने जो आफ़्ताब लिखा
दूर से आए थे साक़ी सुन के मय-ख़ाने को हम
दिल की बे-ताबी ठहरने नहीं देती मुझ को
रुत्बा कुछ आशिक़ी में न कम है फ़क़ीर का
अंदाज़ कुछ और नाज़-ओ-अदा और ही कुछ है
सहर हम ने चमन-अंदर अजब देखा कल इक दिलबर
ये हुस्न है आह या क़यामत कि इक भभूका भभक रहा है
उस के शरार-ए-हुस्न ने शोअ'ला जो इक दिखा दिया
मुझे इस झमक से आया नज़र इक निगार-ए-रा'ना