ज़माने के हाथों से चारा नहीं है
ज़माना हमारा तुम्हारा नहीं है
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कौन याँ साथ लिए ताज-ओ-सरीर आया है
साक़ी शराब है तो ग़नीमत है अब की अब
मय भी है मीना भी है साग़र भी है साक़ी नहीं
गर ऐश से इशरत में कटी रात तो फिर क्या
जो कुछ है हुस्न में हर मह-लक़ा को ऐश-ओ-तरब
सनम के कूचे में छुप के जाना अगरचे यूँ है ख़याल दिल का
सब किताबों के खुल गए मअ'नी
तू जो कल आने को कहता है 'नज़ीर'
दिल न लो दिल का ये लेना है न इख़्फ़ा होगा
पुकारा क़ासिद-ए-अश्क आज फ़ौज-ए-ग़म के हाथों से
चाहत के अब इफ़शा-कुन-ए-असरार तो हम हैं
न इतना ज़ुल्म कर ऐ चाँदनी बहर-ए-ख़ुदा छुप जा