तू जो कल आने को कहता है 'नज़ीर'
तुझ को मालूम है कल क्या होगा
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उस शोख़ को हम ने जिस घड़ी जा देखा
चितवन की कहूँ कि इशारात की गर्मी
ऐ दिल अपनी तू चाह पर मत फूल
है दसहरे में भी यूँ गर फ़रहत-ओ-ज़ीनत 'नज़ीर'
शेवा-ए-नाज़ होश छल जाना
हुए ख़ुश हम एक निगार से हुए शाद उस की बहार से
मुंतज़िर उस के दिला ता-ब-कुजा बैठना
किस के लिए कीजिए जामा-ए-दीबा-तलब
हम उस की जफ़ा से जी में हो कर दिल-गीर
तुम्हारे हिज्र में आँखें हमारी मुद्दत से
देखे न मुझे क्यूँकर अज़-चश्म-ए-हिक़ारत-ऊ
जिसे मोल लेना हो ले ले ख़ुशी से