हम उस की जफ़ा से जी में हो कर दिल-गीर
रुक बैठे तो हैं वले करें क्या तक़रीर
दिल हाथ से जाता है बग़ैर उस से मिले
अब जो न पड़ें पाँव तो फिर क्या तदबीर
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सनम के कूचे में छुप के जाना अगरचे यूँ है ख़याल दिल का
रोटियाँ
कूचे में तुम्हारे हम जो टुक आते हैं
पाया मज़ा ये हम ने अपनी निगह लड़ी का
उस के शरार-ए-हुस्न ने शोअ'ला जो इक दिखा दिया
शहर-ए-दिल आबाद था जब तक वो शहर-आरा रहा
तुझे कुछ भी ख़ुदा का तर्स है ऐ संग-दिल तरसा
ऐ चश्म जो ये अश्क तू भर लाई है कम-बख़्त
ये जवाहिर-ख़ाना-ए-दुनिया जो है बा-आब-ओ-ताब
देख ले इस चमन-ए-दहर को दिल भर के 'नज़ीर'
क्या कहीं दुनिया में हम इंसान या हैवान थे
बना है अपने आलम में वो कुछ आलम जवानी का