कूचे में तुम्हारे हम जो टुक आते हैं
और दिल को ज़रा बैठ के बहलाते हैं
हो तुम जो दिल-आराम तो हम देख तुम्हें
इक दम रुख़-ए-आराम को तक जाते हैं
Jaun Eliya
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अंदाज़ कुछ और नाज़-ओ-अदा और ही कुछ है
ग़श खा के गिरा पहले ही शोले की झलक से
रुख़ परी चश्म परी ज़ुल्फ़ परी आन परी
अल्ताफ़ बयाँ हों कब हम से ऐ जान तुम्हारी सूरत के
हैं दम के साथ इशरत ओ उसरत हज़ार-हा
महबूब ने पैरहन में जब इत्र मला
रहे जो शब को हम उस गुल के सात कोठे पर
ऐश कर ख़ूबाँ में ऐ दिल शादमानी फिर कहाँ
ऐ दिल अपनी तू चाह पर मत फूल
सनम के कूचे में छुप के जाना अगरचे यूँ है ख़याल दिल का
याँ तो कुछ अपनी ख़ुशी से नहीं हम आए हुए
क़स्र-ए-रंगीं से गुज़र बाग़-ओ-गुलिस्ताँ से निकल