रहबरी के लिए रहनुमा छोड़ दो
जा रहे हो तो अपना पता छोड़ दो
हौसलों से करो पार दरिया को तुम
कश्तियाँ छोड़ दो नाख़ुदा छोड़ दो
ताकि एहसास ज़ेहनों में ज़िंदा रहे
शाख़ पर एक पत्ता हरा छोड़ दो
याद उस की न राहों से भटके कहीं
जुगनुओं को चमकता हुआ छोड़ दो
Allama Iqbal
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अगर वो हादिसा फिर से हुआ तो
वो शे'र सुन के मिरा हो गया दिवाना क्या
जीत कर भी फिर से हारी ज़िंदगी
क्या तुम ने भी है कल रतजगा किया