रंग लाई है हसरत-ए-तामीर
गिर रही हैं इमारतें क्या क्या
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हर नक़्श है वजूद-ए-फ़ना मेरे सामने
मैं राख होता गया और चराग़ जलता रहा
वो आया तो इतना प्यार देगा
बरस रही थी बारिश बाहर
कौन हूँ क्यूँ ज़िंदा हूँ सोचता रहता हूँ
पहले इंकार बहुत करता है
जब वो साथ होता है
आँखें किस का खोज लगाती रहती हैं
कैसा तारा टूटा मुझ में
मिट्टी से कुछ ख़्वाब उगाने आया हूँ
ख़्वाब क्या था जो मिरे सर में रहा
बिखर के जाता कहाँ तक कि मैं तो ख़ुशबू था