पत्थर होता जाता हूँ
हँसने दो या रोने दो
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ख़्वाब क्या था जो मिरे सर में रहा
यूँ तुझे देख के चौंक उठती हैं सोई यादें
कैसा तारा टूटा मुझ में
उभर रहे हैं कई हाथ शब के पर्दे से
जागते हैं सोते हैं
गलियाँ उदास खिड़कियाँ चुप दर खुले हुए
घरों में सब्ज़ा छतों पर गुल-ए-सहाब लिए
बरस रही थी बारिश बाहर
पीछे मुड़ के देखना अच्छा लगा
शाख़ में सब्ज़ा धूप में साया वापस आया
वो बिस्तर में पड़ी रही
हर नक़्श है वजूद-ए-फ़ना मेरे सामने