और ही वो लोग हैं जिन को है यज़्दाँ की तलाश
मुझ को इंसानों की दुनिया में है इंसाँ की तलाश
Gulzar
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Javed Akhtar
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Habib Jalib
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Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Wasi Shah
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बदल गई है कुछ ऐसी हवा ज़माने की
जिस दर्जा नेक होने की मिलती रही है दाद
चश्म-ए-नम कुछ भी नहीं और शेर-ए-तर कुछ भी नहीं
जो लोग मौत को ज़ालिम क़रार देते हैं
हालात अब तो इतने दुश्वार हो गए हैं
किस क़ुव्वत-ए-बे-दर्द का इज़हार है दुनिया
किसी की मेहरबानी से मोहब्बत मुतमइन क्या हो
ये जो इंसाँ ख़ुदा का है शहकार
हम से शिकायतें बजा हम को भी है मगर गिला
ख़ुद-फ़रेबी ने बे-शक सहारा दिया और तबीअ'त ब-ज़ाहिर बहलती रही
आँखों में बे-रुख़ी नहीं दिल में कशीदगी नहीं