जिस दर्जा नेक होने की मिलती रही है दाद
उस दर्जा नेक बनने का अरमाँ कभी न था
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Habib Jalib
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(401) Peoples Rate This
जिन के गुनाह मेरी नज़र से निहाँ नहीं
और ही वो लोग हैं जिन को है यज़्दाँ की तलाश
बदल गई है कुछ ऐसी हवा ज़माने की
ख़ुद-फ़रेबी ने बे-शक सहारा दिया और तबीअ'त ब-ज़ाहिर बहलती रही
हम से शिकायतें बजा हम को भी है मगर गिला
जो लोग मौत को ज़ालिम क़रार देते हैं
किसी की मेहरबानी से मोहब्बत मुतमइन क्या हो
चश्म-ए-नम कुछ भी नहीं और शेर-ए-तर कुछ भी नहीं
अभी से वो दामन छुड़ाने लगे हो
हवस की आग बुझी दिल की तिश्नगी है वही
किस क़ुव्वत-ए-बे-दर्द का इज़हार है दुनिया