हम से शिकायतें बजा हम को भी है मगर गिला
पहले से हम नहीं अगर पहले से आप भी नहीं
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Anwar Masood
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Allama Iqbal
Ahmad Faraz
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ख़ुद-फ़रेबी ने बे-शक सहारा दिया और तबीअ'त ब-ज़ाहिर बहलती रही
ये जो इंसाँ ख़ुदा का है शहकार
हालात अब तो इतने दुश्वार हो गए हैं
हर शख़्स बन गया है ख़ुदा तेरे शहर में
और ही वो लोग हैं जिन को है यज़्दाँ की तलाश
जिन के गुनाह मेरी नज़र से निहाँ नहीं
हवस की आग बुझी दिल की तिश्नगी है वही
लज़्ज़त-ए-ख़्वाब दे गए हुस्न-ए-ख़याल दे गए
आँखों में बे-रुख़ी नहीं दिल में कशीदगी नहीं
अभी से वो दामन छुड़ाने लगे हो
जो लोग मौत को ज़ालिम क़रार देते हैं