रुख़्सत होते वक़्त
उस ने कुछ नहीं कहा
लेकिन एयरपोर्ट पर अटैची खोलते हुए
मैं ने देखा
मेरे कपड़े के नीचे
उस ने
अपने दोनों बच्चों की तस्वीर छुपा दी है
तअज्जुब है
छोटी बहन हो कर भी
उस ने मुझे माँ की तरह दुआ दी है
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जिसे देखते ही ख़ुमारी लगे
उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
कभी कभी यूँ भी हम ने अपने जी को बहलाया है
मैं अपने इख़्तियार में हूँ भी नहीं भी हूँ
छोटी सी शॉपिंग
किसी से ख़ुश है किसी से ख़फ़ा ख़फ़ा सा है
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
दिल में न हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती
बिंदराबन के कृष्ण-कन्हैया अल्लाह-हू
बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं
सितंबर1965
ये कैसी कश्मकश है ज़िंदगी में