घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए
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छोटी सी हँसी
नींद पूरे बिस्तर में नहीं होती
हम लबों से कह न पाए उन से हाल-ए-दिल कभी
तू क़रीब आए तो क़ुर्बत का यूँ इज़हार करूँ
बहुत मुश्किल है बंजारा-मिज़ाजी
बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ
मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं
किस से पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ कई बरसों से
छोटी सी शॉपिंग
एक चिड़िया
अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं