नींद पूरे बिस्तर में नहीं होती
वो पलंग के एक कोने में
दाएँ
या बाएँ
कसी मख़्सूस तकिए की
तोड़-मोड़ में छुपी होती है
जब तकिए और गर्दन में
समझौता हो जाता है
तो आदमी चैन से
सो जाता है
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Gulzar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Wasi Shah
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Friends Poetry
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कच्चे बख़िये की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं
अब किसी से भी शिकायत न रही
कोशिश के बावजूद ये इल्ज़ाम रह गया
न जाने कौन सा मंज़र नज़र में रहता है
चौथा आदमी
सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें
सूरज को चोंच में लिए मुर्ग़ा खड़ा रहा
एक चिड़िया
छोटी सी हँसी
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला
नज़दीकियों में दूर का मंज़र तलाश कर