बंद कमरा
छटपटाता सा अंधेरा
और
दीवारों से टकराता हुआ
मैं!!
मुंतज़िर हूँ मुद्दतों से अपनी पैदाइश के दिन का
अपनी माँ के पेट से
निकला हूँ जब से
ख़ुद अपने पेट के अंदर पड़ा हूँ
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होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
हर तरफ़ हर जगह बे-शुमार आदमी
बृन्दाबन के कृष्ण कन्हैय्या अल्लाह हू
कोई किसी से ख़ुश हो और वो भी बारहा हो ये बात तो ग़लत है
बृन्दाबन के कृष्ण कन्हैया अल्लाह हू
ख़ुश-हाल घर शरीफ़ तबीअत सभी का दोस्त
बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता
राक्षस था न ख़ुदा था पहले
तू क़रीब आए तो क़ुर्बत का यूँ इज़हार करूँ
तन्हा तन्हा दुख झेलेंगे महफ़िल महफ़िल गाएँगे
अपना ग़म ले के कहीं और न जाया जाए
तुम से छुट कर भी तुम्हें भूलना आसान न था