ख़ुश-हाल घर शरीफ़ तबीअत सभी का दोस्त
वो शख़्स था ज़ियादा मगर आदमी था कम
Ahmad Faraz
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सरहद-पार का एक ख़त पढ़ कर
सितंबर1965
मोर नाच
एक बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा
इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे
ये न पूछो कि वाक़िआ क्या है
सोने से पहले
एक तस्वीर
रिश्तों का ए'तिबार वफ़ाओं का इंतिज़ार
नील-गगन में तैर रहा है उजला उजला पूरा चाँद
मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं
हर इक रस्ता अँधेरों में घिरा है