मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं
जुदा जुदा हैं धर्म इलाक़े एक सी लेकिन ज़ंजीरें हैं
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Rahat Indori
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Anwar Masood
Gulzar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Habib Jalib
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नज़्म बहुत आसान थी पहले
हर इक रस्ता अँधेरों में घिरा है
जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया
वक़्त बंजारा-सिफ़त लम्हा ब लम्हा अपना
ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
दिल में न हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती
आनी जानी हर मोहब्बत है चलो यूँ ही सही
बिंदराबन के कृष्ण-कन्हैया अल्लाह-हू
बस यूँही जीते रहो
अच्छी नहीं ये ख़ामुशी शिकवा करो गिला करो
जाने वालों से राब्ता रखना
सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें