मुमकिन है सफ़र हो आसाँ अब साथ भी चल कर देखें
कुछ तुम भी बदल कर देखो कुछ हम भी बदल कर देखें
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Jaun Eliya
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Parveen Shakir
Habib Jalib
Allama Iqbal
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Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
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मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं
मोहब्बत
बुझ गए नील-गगन
इंतिज़ार
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
उठ के कपड़े बदल घर से बाहर निकल जो हुआ सो हुआ
बे-ख़्वाब नींद
अपना ग़म ले के कहीं और न जाया जाए
ये न पूछो कि वाक़िआ क्या है
सरहद-पार का एक ख़त पढ़ कर
सलीक़ा
मैं अपने इख़्तियार में हूँ भी नहीं भी हूँ