सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Gulzar
Rahat Indori
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Habib Jalib
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(498) Peoples Rate This
बदला न अपने-आप को जो थे वही रहे
बृन्दाबन के कृष्ण कन्हैय्या अल्लाह हू
वही हमेशा का आलम है क्या किया जाए
मशीन
जो हो इक बार वो हर बार हो ऐसा नहीं होता
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
नशा नशे के लिए है अज़ाब में शामिल
मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं
जिसे देखते ही ख़ुमारी लगे
हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए
बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं
ज़िहानतों को कहाँ कर्ब से फ़रार मिला