बृन्दाबन के कृष्ण कन्हय्या अल्लाह हू
बंसी राधा गीता गैय्या अल्लाह हू
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बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं
गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया
सफ़र को जब भी किसी दास्तान में रखना
किसी से ख़ुश है किसी से ख़फ़ा ख़फ़ा सा है
कोई नहीं है आने वाला फिर भी कोई आने को है
दीवानगी रहे बाक़ी
नया दिन
राक्षस था न ख़ुदा था पहले
पिघलता धुआँ
इतनी पी जाओ
नया सफ़र