सूरज!
इक नट-खट बालक-सा
दिन भर शोर मचाए
इधर उधर चिड़ियों को बिखेरे
किरनों को छितराए
क़लम दरांती ब्रश हथौड़ा
जगह जगह फैलाए
शाम! थकी हारी माँ जैसी
इक दिया मलकाए
धीमे धीमे
सारी बिखरी चीज़ें चुनती जाए
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फ़ासला
इतनी पी जाओ
मोहब्बत
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा
अब किसी से भी शिकायत न रही
ख़ुश-हाल घर शरीफ़ तबीअत सभी का दोस्त
जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया
नील-गगन में तैर रहा है उजला उजला पूरा चाँद
गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया
नक़ाबें
इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे
यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें