यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
Habib Jalib
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धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
बस यूँही जीते रहो
उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
मशीन
जो हो इक बार वो हर बार हो ऐसा नहीं होता
नई नई आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है
मोहब्बत में वफ़ादारी से बचिए
जब से क़रीब हो के चले ज़िंदगी से हम
उठ के कपड़े बदल घर से बाहर निकल जो हुआ सो हुआ
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा
देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ