कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई
आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई
Allama Iqbal
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सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें
चौथा आदमी
जब भी किसी ने ख़ुद को सदा दी
उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मालूम न था
वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहाँ में
हर जंगल की एक कहानी वो ही भेंट वही क़ुर्बानी
मन बै-रागी तन अनूरागी क़दम क़दम दुश्वारी है
काला अम्बर पीली धरती या अल्लाह
फ़क़त चंद लम्हे
ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं
कठ-पुतली है या जीवन है जीते जाओ सोचो मत