मिरे बदन में खुले जंगलों की मिट्टी है
मुझे सँभाल के रखना बिखर न जाऊँ में
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दिन सलीक़े से उगा रात ठिकाने से रही
हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए
नक़्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढिए
ये न पूछो कि वाक़िआ क्या है
दो चार गाम राह को हमवार देखना
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी
एक चिड़िया
नज़दीकियों में दूर का मंज़र तलाश कर
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो
ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
सफ़र को जब भी किसी दास्तान में रखना