मेरी ग़ुर्बत को शराफ़त का अभी नाम न दे
वक़्त बदला तो तिरी राय बदल जाएगी
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सलीक़ा
बृन्दाबन के कृष्ण कन्हैया अल्लाह हू
बुझ गए नील-गगन
नया दिन
आनी जानी हर मोहब्बत है चलो यूँ ही सही
सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
बे-ख़्वाब नींद
चाहतें मौसमी परिंदे हैं रुत बदलते ही लौट जाते हैं
यक़ीन चाँद पे सूरज में ए'तिबार भी रख
बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ
ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को