हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिस को भी देखना हो कई बार देखना
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Rahat Indori
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Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
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ख़ुदा का घर नहीं कोई
वक़्त बंजारा-सिफ़त लम्हा ब लम्हा अपना
हम लबों से कह न पाए उन से हाल-ए-दिल कभी
मोहब्बत में वफ़ादारी से बचिए
मिरे बदन में खुले जंगलों की मिट्टी है
जब भी किसी ने ख़ुद को सदा दी
बृन्दाबन के कृष्ण कन्हैया अल्लाह हू
दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता
जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया
कोशिश के बावजूद ये इल्ज़ाम रह गया
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा
चौथा आदमी