दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए
Faiz Ahmad Faiz
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हर एक घर में दिया भी जले अनाज भी हो
वो ख़ुश-लिबास भी ख़ुश-दिल भी ख़ुश-अदा भी है
बस यूँही जीते रहो
हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए
फ़ातिहा
नील-गगन में तैर रहा है उजला उजला पूरा चाँद
दो चार गाम राह को हमवार देखना
मुमकिन है सफ़र हो आसाँ अब साथ भी चल कर देखें
मोर नाच
ख़ुश-हाल घर शरीफ़ तबीअत सभी का दोस्त
ख़तरे के निशानात अभी दूर हैं लेकिन
बृन्दाबन के कृष्ण कन्हैया अल्लाह हू