दूर के चाँद को ढूँडो न किसी आँचल में
ये उजाला नहीं आँगन में समाने वाला
Faiz Ahmad Faiz
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ये काटे से नहीं कटते ये बाँटे से नहीं बटते
कल रात
पैदाइश
दिन सलीक़े से उगा रात ठिकाने से रही
हर इक रस्ता अँधेरों में घिरा है
सफ़र को जब भी किसी दास्तान में रखना
मोहब्बत में वफ़ादारी से बचिए
इंतिज़ार
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
सरहद-पार का एक ख़त पढ़ कर
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है
उठ के कपड़े बदल घर से बाहर निकल जो हुआ सो हुआ