ये काटे से नहीं कटते ये बाँटे से नहीं बटते
नदी के पानियों के सामने आरी कटारी क्या
Wasi Shah
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Habib Jalib
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Jaun Eliya
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
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बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
सलीक़ा
क़ौमी यक-जेहती
गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया
रिश्तों का ए'तिबार वफ़ाओं का इंतिज़ार
उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मालूम न था
मुमकिन है सफ़र हो आसाँ अब साथ भी चल कर देखें
जब से क़रीब हो के चले ज़िंदगी से हम
कभी कभी यूँ भी हम ने अपने जी को बहलाया है
मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं
हर इक रस्ता अँधेरों में घिरा है
मन बै-रागी तन अनूरागी क़दम क़दम दुश्वारी है